(“inconceivable duality and nonduality”), the belief which the relation in between God and the world is beyond the scope of human comprehension. As well as these philosophical sects, many other Vaishnava groups are scattered in the course of India, typically centred in area temples or shrines.
गुप्तकाल में विष्णु का वराह अवतार सर्वाधिक प्रसिद्ध था।
अन्य नाम पांचरात्र मत, वैष्णव धर्म, भागवत धर्म
वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे, जो वृषण कबीले के थे और जिनका निवास स्थान मथुरा था.
मत्स्य • कूर्म • वराह • नृसिंह • वामन • परशुराम • राम • कृष्ण • बुद्ध • कल्कि
Sri Vaishnavism developed in Tamilakam in the tenth century.[266] It incorporated two various traditions, specifically the tantric Pancaratra tradition, as well as Puranic Vishnu worship of northern India with their abstract Vedantic theology, along with the southern bhakti custom of your Alvars of Tamil Nadu with their individual devotion.[266][seventy two] The tradition was founded by Nathamuni (10th century), who coupled with Yamunacharya, combined The 2 traditions and gave the custom legitimacy by drawing about the Alvars.
राम, कृष्ण, नारायण, कल्की, हरि, विठ्ठल, केशव, माधव, गोविंदा, श्रीनाथजी आणि जगन्नाथ ही समान नावे म्हणून वापरली जाणारी लोकप्रिय नावे आहेत.[१]
बल्लभचार्य ने रामानुज, मध्यवार्य आदि अन्य वैष्णव धर्माचार्यों के मत को स्वीकार न करके अद्वैत मत का समर्थन किया। उन्होंने बतलाया कि यह सृष्टि दो प्रकार की है। जीवात्मक और जड़। हम विश्व में जो कुछ देखते हैं व चैतन्य है अथवा जड़ या इन दोनों का सम्मिश्रण। इन तीनों के वैष्णव धर्म द्वारा संसार में अनेक दृश्य दिखलाई देते हैं। पर इसका यह अर्थ नहीं समझना चाहिए कि कोई वस्तु नष्ट हो जाती है। ब्रह्माण्ड में जो परमाणु हैं उनका नाश कभी नहीं होता। जिसे लोग नाश होना समझते हैं वह वास्तव में रूपांतर होता है। बल्लभाचार्य ने अपने सिद्धान्त के समर्थन के लिए वेद और उपनिषद् के प्रमाण दिये और वास्तव में उनका सिद्धान्त बहुत ऊंचे दर्जे का और ज्ञानमय है।
जीव गोस्वामी : षट् संदर्भ (विशेषत: भक्ति संदर्भ और प्रीति संदर्भ);
श्री वैष्णव सम्प्रदाय या श्री वैष्णव हिंदू धर्म की वैष्णव संप्रदाय के भीतर एक संप्रदाय है।
नित्य: परमात्मदेवताविशेष इह वासदेवो गृह्यते (प्रदीप)
कृष्ण में इन चारों का सद्भाव उनकी भगवत्ता सिद्ध करने का परम उपाय है। 'आवेश' रूप में भगवान् जीवों में न्यूनाधिक रूप से अपनी शक्ति का आधान करते हैं। यह उनका सबसे छोटा रूप माना जाता है।
शैवधर्म के उद्भव एवं प्रारम्भिक इतिहास
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